शनिवार, 31 मार्च 2018

श्रेष्ठ हिंदी हाइकु - मार्च माह

श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु - मार्च माह

खेलें वो फाग
बुझ जाए बैर की
दिल से आग
       -सूर्य नारायण गुप्त 'सूर्य'
रोज़ सुबह
अखबार से आए
खूनी बौछार
      -राजीव गोयल
होली की आग
करे भस्म विषमता
लाए समता
       -डा. रंजना वर्मा
नन्द के लाल
लिए रंग गुलाल
राधा बेहाल
       -सुशील शर्मा
पलाश फूल
धरा पर बिखरा
होली का रंग
       -विष्णु प्रिय पाठक
नन्हीं गौरैया
हो चली है विलुप्त
फाग के गीत
      -विष्णु प्रिय पाठक
मैंने जो रचा
सपनों का घरौंदा
वक्त ने रौंधा
      सूर्य नारायण गुप्त
होली तो होली
पर गांठें मन की
क्या तूने खोलीं ?
       -राजीव गोयल
नभ के गाल
उषा करे ठिठोली
मले गुलाल
     -सुरंगमा यादव
पूर्णिमा रात
चन्द्र घट छलका
बिखरी चांदनी
      -सुरंगमा यादव
खिज़ा की मार
दरख्तों ने खो दिया
रूप श्रृंगार
      -राजीव गोयल
बड़े चुभते
कांच की किरच से
टूटते रिश्ते
       सुशील शर्मा
लाल चूनर
गदराया सेमल
युवा बसंत
      -राम कृष्ण त्रिवेदी 'मधुकर'
जुगलबंदी
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गहन वन
भूलती पगडंडी
अपना पथ
      -शिव डोयले
जीवन रेखा
पगडंडियाँ  होतीं -
पहाड़ों पर
        -राजीव गोयल
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फिर उभरा
यादों के दर्पण में
अक्स तुम्हारा
       -सुरंगमा यादव
सूरज उगा
फूलों पर ठिठका
मोती टपका
       डा. रंजना वर्मा
नन्हीं कोंपल
कंकाल दरख़्त पे
नई ग़ज़ल
       विष्णु प्रिय पाठक
मन में भाव
युद्ध अनवरत
कभी न रुके
      -डा. रंजना वर्मा
नारी की व्यथा
द्रोपदी,मीरा, राधा
सीता की कथा
       -सूर्य नारायण गुप्त 'सूर्य'
रीत जाता है
जीवन अनकहा
बीत जाता है
         -निगम 'राज'
शक्ति स्वरूपा
नारी ही नारायणी
करुणा मूर्ति
       -डा. रंजना वर्मा
अपराजिता.
हर पल प्रिय से
हारती रही
       -सुशील शर्मा
अतिथि जैसा
है महिला दिवस
आया व गया
        -पुष्पा सिन्धी
सबसे न्यारा
जो दूर है सितारा
वही हमारा
       -निगम 'राज़'
सूर्य-घट से
छलके स्वर्ण-कण
रचते धूप
       -कमल कपूर
मन उमंग
स्वार्थ की भीड़ देख
हो गया दंग
       -सूर्य नारायण 'सूर्य'
उठती रही
तेरी याद लहर
मन सागर
       -राजीव गोयल
दौड़ा विकास
टूटी सडकों पर
लुढ़क गया
       विष्णु प्रिय पाठक
उलझे रहे.
शिकायतों का बुना
मकड़ जाल
       सुरंगमा यादव
फूलों की घाटी
हरे-भरे पहाड़
धरा की थाती
       -सूर्य नारायण गुप्त 'सूर्य'
ख़्वाब बांटती
नीद की गलियों में
बावरी रात
       -कमल कपूर
बिना विवाद
छोड़ देते आसन
पात पुराने
        -सुरंगमा यादव
देह ने किया
साँसों से अनुबंध
सच्चा सम्बन्ध
        -पुष्पा सिन्धी
बड़े शहर
छोटा होता जा रहा
'इंसानी' क़द
        -राजीव गोयल
चूर चूर हूँ
टुकड़े  हुआ अहं
स्व से दूर हूँ
       -प्रियंका वाजपेयी
राधा अनंग
रंगी कृष्ण के रंग
गोपियाँ दंग 
      -निगम 'राज़'
ताली बजाती
जूतों का चित्र बना
बेपैर बच्ची
       -पुष्पा सिन्धी
a bird's nest
will never be broken
it's my house
        -Tukaram khillare
घर मेरा है
घोंसला चिड़िया का
तोडूंगा नहीं
         अनुवाद (सु. व.)
कंक्रीट वन
छाँव बरगद की
ढूँढ़ते खग
     - राजीव गोयल
बदली ऋतु
धूप बदहवास
आँगन रोए
      -नरेन्द्र श्रीवास्तव
देखा दर्पण
भूल गए ढूँढ़ना
चाँद का दाग
      -सुरंगमा यादव
प्यासी गौरैया
नदी के तट पर
सकोरा ढूँढे
       - नरेन्द्र श्रीवास्तव
नन्ही गौरिया
दर्पण निहारती
चोंच मारती
      -सुरेश शर्मा
राग दीपक
गौरैया मार रही
टोंटी पे चोंच
       -विष्णु प्रिय पाठक
प्यासे पखेरू
नदी में तलाशते
दो बूंद पानी
       -नरेन्द्र श्रीवास्तव
सजी कविता
पुलकित आखर
श्रृंगार करें
       पुष्पा सिन्घी
खिली धूप  में
होती जब  बारिश
नहाता सूर्य
       -सुरंगमा यादव
गरम हवा
अम्बिया को छू कर
करती जवां
        -सूर्य किरण सोनी
भूला खिलौने
बच्चा बना श्रमिक
प्लेट धो रहा
       -डा, रंजना वर्मा
बारह खड़ी
धूल में उकेरता
श्रमिक पुत्र 
      -डा. रंजना वर्मा
बड़े सकारे
छुट्टन गओ  खेत
भैंस रंभाए
      (बुन्देलखंडी) -नरेन्द्र श्रीवास्तव
तप्त तवे पे
जल बिंदु-सी स्वाहा
क्रोध में मति
        -सुरंगमा यादव
पकते गीत
भावों की अंगीठी पे
कवि के मन
       -राजीव गोयल
बुरा है दौर
लूट के चल दिए
दिन में चोर
        -सूर्य किरण सोनी
उठा सवाल
कब तक बवाल
राम बेहाल
       -डा. रंजना वर्मा
हल्की फुहार
सौन्दर्य का दर्पण
देती निखार
        -वलजीत  सिंह
दृगों के गाँव
बसती छबि राम
स्पंदित प्राण
         -पुष्पा सिंधी
सचेत सीते
कितने ही मारीच
आज घूमते
        -सुरंगमा यादव
आज अचानक
आई कड़वी याद
मन कसैला
        -सुरंगमा यादव
अन्धेरा भी है
जीवन तेरे संग
सवेरा भी है
         -सूर्य नारायण गुप्त 'सूर्य'
जुगलबंदी
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जगत रीत
है झूठा अभिनय
सत्य प्रतीत
        -पुष्पा सिन्धी
जग की रीत
चलदिए पल में
तोड़ के प्रीत
        -सुरंगमा यादव
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घर चौबारे
मेहनत के रंग
सजाते सारे
       -बलजीत सिंह
कैसा स्वराज
कैद है कबूतर
मुक्त है बाज़
       सूर्यनारायण गुप्त 'सूर्य'
जुगलबंदी
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था निर्जीव वो
मिली हवा से सांस
जी उठा बांस
       -राजीव गोयल
मैं बुझा सा था
मिला दोस्तों का साथ
हूँ खिला खिला
       -राजीव निगम 'राज़'
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--------------समाप्त----------------
     




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