श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु - नवम्बर माह
बांटता फिरे
ये बसंत डाकिया
सुगन्ध पत्र
-राजीव गोयल
ओस की बूंद
पल में खुशियों ने
आँखें ली मूंद
-सुरंगमा यादव
प्रीत के पाँव
बिन पायल बाजे
सुनता गाँव
-सुरंगमा यादव
दीपकोत्सव
स्याह अन्धेरा फैले
साझे दर पे
-विभा श्रीवास्तव
बारिश आई
ठहरा हुआ पानी
ले अंगडाई
-बलजीत सिंह
ज्यों तेल बाती
आलोकित जीवन
जीवन साथी
-शिव डोयले
नोच के फेंकी
कैसा बाल दिवस
कोख की कली
-राजीव गोयल
बालक मन
मजबूर हुआ है
बंधुआ तन
-निगम राज़
उसी कक्षा में
दादी का नामांकन
बाल दिवस
विभा श्रीवास्तव
जग कॉलेज
ज़िंदगी की किताब
बांटती ज्ञान
-राजीव गोयल
चाँद न तारे
अभिलाषा के फूल
सबसे प्यारे
-वलजीत सिंह
दूर सबसे
गर्व-गिरि पे तुम
चढ़े जब से
-सुरंगमा यादव
प्रेम समीर
बहती आसपास
तेरी खुशबू
-नरेन्द्र श्रीवास्तव
साईं की कृपा
कांटे स्वयं दे रहे
फूलों का पता
-सुरंगमा यादव
कैसा समाज
शरीफों को ठोकर
चोरों को ताज
-बलजीत सिंह
शब्दों की फाँस
वर्षों तक देती है
मन को त्रास
सुरंगमा यादव
प्रत्येक पौधा
पर्यावरण हेतु
बना है योद्धा
बलजीत सिंह
आंसू न कहो
पीड़ा के सागर से
छलकी बूँदें
- सुरंगमा यादव
एक पर का
पंछी फड़फड़ाए
बहते आंसू
तुकाराम खिल्लारे
वृद्धा आश्रम
माँ बाप खाते जहां
बेटे का गम
-सूर्य नारायण गुप्त 'सूर्य'
खुद को पाया
जग भर को पाया
पल में मैंने
-सुरंगमा यादव
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बांटता फिरे
ये बसंत डाकिया
सुगन्ध पत्र
-राजीव गोयल
ओस की बूंद
पल में खुशियों ने
आँखें ली मूंद
-सुरंगमा यादव
प्रीत के पाँव
बिन पायल बाजे
सुनता गाँव
-सुरंगमा यादव
दीपकोत्सव
स्याह अन्धेरा फैले
साझे दर पे
-विभा श्रीवास्तव
बारिश आई
ठहरा हुआ पानी
ले अंगडाई
-बलजीत सिंह
ज्यों तेल बाती
आलोकित जीवन
जीवन साथी
-शिव डोयले
नोच के फेंकी
कैसा बाल दिवस
कोख की कली
-राजीव गोयल
बालक मन
मजबूर हुआ है
बंधुआ तन
-निगम राज़
उसी कक्षा में
दादी का नामांकन
बाल दिवस
विभा श्रीवास्तव
जग कॉलेज
ज़िंदगी की किताब
बांटती ज्ञान
-राजीव गोयल
चाँद न तारे
अभिलाषा के फूल
सबसे प्यारे
-वलजीत सिंह
दूर सबसे
गर्व-गिरि पे तुम
चढ़े जब से
-सुरंगमा यादव
प्रेम समीर
बहती आसपास
तेरी खुशबू
-नरेन्द्र श्रीवास्तव
साईं की कृपा
कांटे स्वयं दे रहे
फूलों का पता
-सुरंगमा यादव
कैसा समाज
शरीफों को ठोकर
चोरों को ताज
-बलजीत सिंह
शब्दों की फाँस
वर्षों तक देती है
मन को त्रास
सुरंगमा यादव
प्रत्येक पौधा
पर्यावरण हेतु
बना है योद्धा
बलजीत सिंह
आंसू न कहो
पीड़ा के सागर से
छलकी बूँदें
- सुरंगमा यादव
एक पर का
पंछी फड़फड़ाए
बहते आंसू
तुकाराम खिल्लारे
वृद्धा आश्रम
माँ बाप खाते जहां
बेटे का गम
-सूर्य नारायण गुप्त 'सूर्य'
खुद को पाया
जग भर को पाया
पल में मैंने
-सुरंगमा यादव
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