हँसा के हँस
मूर्ख बनके रह
मज़े में बस
-निगम 'राज़'
सब आसक्त
ये जानते नहीं क्या
बहता वक्त
-निगम 'राज़'
धूप है तीखी
छाँव में जल-पात्र
पक्षी,पानी पी
(हाइगा)-- प्रीति दक्ष
दिखे युवक
गेरुआ फैशन में
योगी का रंग !
-विष्णु प्रिय पाठक
तमतमाया
कटे वनों को देख
आहत सूर्य
-प्रियंका वाजपेयी
जुगल-बंदी
-----------
नया समय
बदल रहा दौर
राहें हैं और
-डा. रंजना वर्मा
राहें हैं वही
मुसाफिर नशे में
चलें तो कैसे
-जितेन्द्र वर्मा
--------------
मिलते ऐसे
जैसे अजनबी हों
अदा ये कैसी !
-जितेन्द्र वर्मा
वक्त बदला
गगन से रवि का
पाँव फिसला
डा. रंजना वर्मा
आंधी की गूँज
छतों पे टंगी बत्ती
फड़फड़ाए
-विभा श्रीवास्तव
नदी का तीर
गंदेनालों ने खींची
लंबी लकीर
-विष्णु प्रिय पाठक
भैंस पे बैठ
कर रहा सवारी
कौओं का जोड़ा
-राजीव गोयल
जुगलबंदी
----------
कागज़ मोड़
बनाई एक नाव
पार न लगी
-राजीव गोयल
कागज़ी नाव
सागर पार जाना
नहीं संभव
-मंजूषा मन
----------------
नाच रही हैं
दीये की रोशनी में
परछाइयां
-राजीव गोयल
प्यार का राज़
जुबां तो चुप रही
आँखें बोल दीं
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय
पर्वत फटा
निकली जलधारा
अमृतमयी
-डा. रंजना वर्मा
गिरी बिजली
मेघों के लगे पर
उफनी नदी
-विष्णु प्रिय पाठक
चला गया वो
छोड़ खूँटी पे टंगी
अपनी यादें
-राजीव गोयल
पालतू कुत्ता
पहुंचा वृद्धाश्रम
आँखों में आंसू
-राजीव गोयल
वर्षा सुहानी
सिन्धु का हर बिंदु
पानी कहानी
--प्रदीप कुमार डास
सागर तट
बना रहे बालक
रेत का घर
-विष्णु प्रिय पाठक
मूर्ख बनके रह
मज़े में बस
-निगम 'राज़'
सब आसक्त
ये जानते नहीं क्या
बहता वक्त
-निगम 'राज़'
धूप है तीखी
छाँव में जल-पात्र
पक्षी,पानी पी
(हाइगा)-- प्रीति दक्ष
दिखे युवक
गेरुआ फैशन में
योगी का रंग !
-विष्णु प्रिय पाठक
तमतमाया
कटे वनों को देख
आहत सूर्य
-प्रियंका वाजपेयी
जुगल-बंदी
-----------
नया समय
बदल रहा दौर
राहें हैं और
-डा. रंजना वर्मा
राहें हैं वही
मुसाफिर नशे में
चलें तो कैसे
-जितेन्द्र वर्मा
--------------
मिलते ऐसे
जैसे अजनबी हों
अदा ये कैसी !
-जितेन्द्र वर्मा
वक्त बदला
गगन से रवि का
पाँव फिसला
डा. रंजना वर्मा
आंधी की गूँज
छतों पे टंगी बत्ती
फड़फड़ाए
-विभा श्रीवास्तव
नदी का तीर
गंदेनालों ने खींची
लंबी लकीर
-विष्णु प्रिय पाठक
भैंस पे बैठ
कर रहा सवारी
कौओं का जोड़ा
-राजीव गोयल
जुगलबंदी
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कागज़ मोड़
बनाई एक नाव
पार न लगी
-राजीव गोयल
कागज़ी नाव
सागर पार जाना
नहीं संभव
-मंजूषा मन
----------------
नाच रही हैं
दीये की रोशनी में
परछाइयां
-राजीव गोयल
प्यार का राज़
जुबां तो चुप रही
आँखें बोल दीं
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय
पर्वत फटा
निकली जलधारा
अमृतमयी
-डा. रंजना वर्मा
गिरी बिजली
मेघों के लगे पर
उफनी नदी
-विष्णु प्रिय पाठक
चला गया वो
छोड़ खूँटी पे टंगी
अपनी यादें
-राजीव गोयल
पालतू कुत्ता
पहुंचा वृद्धाश्रम
आँखों में आंसू
-राजीव गोयल
वर्षा सुहानी
सिन्धु का हर बिंदु
पानी कहानी
--प्रदीप कुमार डास
सागर तट
बना रहे बालक
रेत का घर
-विष्णु प्रिय पाठक
नमन
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