मंगलवार, 28 फ़रवरी 2017

फरवरी, २०१७ के श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु

आम्र मंजरी
पीहू पीहू गायन
वसंत दूत
     प्रीति दक्ष
ऋतु वसंत
जीवन का स्पंदन
अभिनन्दन
       डा, रंजना वर्मा
सौंपता नहीं
ऋतुराज को राज
अड़ा शिशिर
       दिनेश चन्द्र पाण्डे
करो इतना
वीना से प्रेम धुन
बरसे हे माँ
       प्रियंका वाजपेयी
ऋतु वसंत
लाया नवजीवन
शरद अंत
      मुकेश वर्मा
वासन्ती  ताव
बढाने को आतुर
प्रेम का भाव
       निगम 'राज़'
रुग्ण तरु का
कर रहे इलाज
वैद्य बसंत
     अभिषेक जैन
वृक्षों को देता
नई नई पोशाक
दानी बसंत
      राजीव गोयल
बसंत जोर
दिग दिगंत शोर
ओर न छोर
       रमेश कुमार सोनी
काफी मनाया
खुली छूट मिली थी
मना नहीं था
      (दो सुखन )-आर के भारद्वाज
टेसू में छिप
चलाए कामदेव
शिव पे तीर
       -राजीव गोयल
मीत के गाँव
इमली मीठी लगे
प्रीत का स्वाद
      रमेश कुमार सोनी
कडुवाहट
जैसे ही मैंने पी ली
ज़िंदगी जी ली
        तुकाराम खिल्लारे
रिश्तों की नाव
विश्वास पतवार
लगाती पार
       राजीव गोयल
पल में टूटी
ये नाज़ुक बड़ी थी
विश्वास डोर
     मंजूषा मन
लड़खड़ाती
गिरती पड़ती है
बेचारी मौत
       जितेन्द्र वर्मा
कितनी पीड़ा
फूटा जैसे ही घड़ा
भूकंप आया
        विष्णु प्रिय पाठक
अच्छी लगे है
तुरशी दोपहर की
बैठते साथ
       जितेन्द्र वर्मा
गलन बढी
कम्बल रजाई से
लगन बढी
     डा. रंजना वर्मा
थू थू कड़वा
मीठा तो लप लप
स्वार्थी मनवा
        विष्णुप्रिय पाठ
प्रेम दिखावा
तोड़े गए गुलाब
बिना सबब
        डा. रंजना वर्मा
जीत का स्वाद
संघर्षों की हांडी में
पके तो मीठा
       रमेश कुमार सोनी
लड़कपन
खट्टा मीठा सरीखा
पागलपन
       विष्णु प्रिय पाठक
फूले गुलाब
हुई नवल भोर
हों पूरे ख़्वाब
        मंजूषा  मन
शहर बसे
तू से आप हो गए
यार पुराने
      दिनेश चन्द्र पाण्डेय
पेट में आग
चूल्हे में तिरता है
आँखों का नीर
       प्रीति दक्ष
मने रोटी डे
बाँटें सब रोटियाँ
बुभुक्षकों को
       डा. रंजना वर्मा
जुगलबंदी (१)
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कागज़ नाव
लिखा एक हाइकु
तैरने लगा
       डा.सुरेन्द्र वर्मा
होती कामना
कागज़ की नाव सी
डूब ही जाती
         डा. रंजना वर्मा
जुगलबंदी (२)
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निराश मन
नमी अभी बाक़ी है
आशा किरण
      डा. सुरेन्द्र वर्मा
आशा निराशा
तैरे कभी डूबती
मन की नाव
       राजीव गोयल
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कंदुक बना
हर ठौर ठोकर
लुढ़के सच
       विष्णु प्रिय पाठक
आँखों की भाषा
मौन से मौन तक
प्यार ही प्यार
       रमेश कुमार सोनी
समय चांटा
चमकता सितारा
धूल में पड़ा
        विभा श्रीवास्तव
रंगीन मंच
सफ़ेद लिबास में
भौंकता कुत्ता
        विष्णु प्रिय पाठक
दबा गुलाब
डायरी के पन्नों में
अब भी ताज़ा
        जितेंद्र वर्मा
अम्मा और बाबा
घर में हैं सबके
काशी और काबा
         अमन चांदपुरी
मौत के साए
भागती है ज़िंदगी
जिए ज़िंदगी
       जितेन्द्र वर्मा
न शोरगुल
न पसरा सन्नाटा
चहकी भोर
       प्रियंका वाजपेयी
आकाश सुर्ख
आदित्य की आहट
लजाती भोर
        प्रियंका वाजपेयी
कर्तव्य किया
क्यूँ अपेक्षा करूं मैं
मुक्त पखेरू
       -तुकाराम खिल्लारे
महकी सासें
तुझे छूकर आया
मंद पवन
       डा. रंजना वर्मा
पत्थर दिल
रहता है शीतल
स्पर्श तो कर
       विष्णु प्रिय पाठक
जुगलबंदी
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संधु  में डूब
करती आत्मह्त्या
थकी नदियाँ
      डा. रंजना वर्मा
पाती सकून
आ सागर बाहों में
थकी नदियाँ
      -राजीव गोयल
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मधुबन हूँ
ज़िंदगी के रंगों से
गुलज़ार हूँ
       -प्रियंका वाजपेयी
नन्ही सी बूंद
हथेली पर गिरी
स्वप्न सी उड़ी
       - कैलाश कल्ला
खुश थी रात
सब उसके पास
चाँद सितारे
         -राजीव गोयल
केलि करतीं
कलियाँ हवा संग
सरसों डोली
       -दिनेश चन्द्र पाण्डेय
भौंरों ने छुआ
कली से फूल हुई
स्पर्श का जादू
       -रमेश कुमार सोनी
काट के पेड़
थके लकड़हारे
ढूँढ़ते छाँव
      -राजीव गोयल
होते ही भोर
रसोई में बर्तन
मचाते शोर
       -राजीव गोयल
वर्षा की झड़ी
पत्तों पे सजा गई
मोती की लढी
       -राजीव गोयल
धरा के पैर
दरारें जब पडीं
वर्षा ने भरीं
       -राजीव गोयल
फकीर द्वार
लिए आशा हज़ार
खड़ी कतार
        -राजीव गोयल
वर्षा की बूँदें
करें धरा स्पर्श
सोंधी खुश्बू
      -कैलाश कल्ला
नभ को छोड़
रवि खम्बों पे चढ़ा
गोधूलि बेला
       - राजीव गोयल
वो बाँझ सीपी
एक बूंद स्वाति की
आस में जिए
        -राजीव गोयल
कर न सका
माली ही हिफाज़त
कलियाँ बिकीं
        -राजीव गोयल
हाथ न आता
वक्त बिना पंख के
उड़ता जाता
         -दिनेश चन्द्र पाण्डेय
आंधी तू ज़रा
फूल से तितली को
छुडा के दिखा
         -राजीव गोयल
एक उत्सव
रोज़ होता है जैसे
जिओ ज़िंदगी
        -जितेन्द्र वर्मा
छुपाए दर्द
जीता रहता हूँ मैं
दर्द ज़िंदगी
        जितेन्द्र वर्मा
आती बहार
खोल वक्त के द्वार
यादें हज़ार
      -राजीव गोयल
बजाए सीटी
गुज़रे जब हवा
आवारा बांस
       -राजीव गोयल
त्रिदल-बंदी
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मातुल छोड़
उड़ निकली चिड़ी
पराए नीड़
      -विष्णु प्रिय पाठक
भीगा आँचल
वीरान है घोंसला
आँखों में जल
       -डा. रंजना वर्मा
आते ही पंख
उड़ जातेहैं चूजे
यादें रुलाए
       -राजीव गोयल
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जो न मिला
पाया उसे स्वप्न में
स्वप्न का खेल
      -जितेन्द्र वर्मा
मारे कंकर
नदिया की धार में
मुड़ी न रुकी
       -दिनेश चन्द्र पाण्डेय
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समाप्त 

शनिवार, 4 फ़रवरी 2017

ऋतु चक्र ४ -सर्दियों के हाइकु : डा सुरेन्द्र वर्मा


शरद-काल
उतारे श्वेत वस्त्र
धारे, चांदनी

हंसता चाँद
शारदीय पूर्णिमा
करे ठिठोली

माह कार्तिक
शीत-उष्ण पवन
सुखद स्पर्श

पुलक उठीं
जूही मधुमालती
स्वागत क्वांर

शरद ऋतु
मल्लिका इतराई
झूमी डगालें

शरद आया
इठलाई शेफाली
मिलनातुर

क्वार-कार्तिक
हंस पडा शरद
चाँद बौराया

नभ निर्मल
झिलमिल चांदनी
शरदोत्सव

शरादोल्लास
हास और परिहास
यौवनाभास

कांसे का गुच्छा
हरसिंगार की माल
शरद दूल्हा

शेफाली वन
पगलाई पवन
मन सुमन

शरद रात
इठलाई चांदनी
करती बात

शरदागम
खिल खिल उठते
वक्ष सुमन

शरदागम
दिन हो गए छोटे
धूप लजाई

हंसता चाँद
शारदीय पूर्णिमा
करे ठिठोली

सर्द रात में
मन में मैदान में
श्वान भूँकते

शिशिरागम
कचनार सुगंध
मंद पवन

हलकी सर्दी
कचनार ने  बाहें
फूलों से ढँकीं

ओस  से भीगा
शिशिर शरारती
भरे बाहों में

गुलदाउदी  
और अमलतास
हेमंत लास्य

टोपी धवल
श्वेत बर्फ की धारे
सजे हेमंत

सर्द रात में
एक अकेली हवा
बजाती सीटी    

शीत नायिका
धूप में खिली खिली
करे श्रृंगार

खामोश रात
झींगुर की आवाज़
मौन तोड़ती

जाड़ों की वर्षा
पूंछ बरसात की
चूहे से बडी

लपेटे रही
कोहरे की चादर
बेचारी धूप

ठंडी हवाएं
वृक्ष के पत्र दल
थरथराए

धता बताता
सर्दी को, रुका नहीं
कुसुमायन

धूप बेचारी
कराहती ही रही
घना कोहरा

कोहरा डरी
धूप अगहन की
लुप्त हो गयी

सर्द आलम
हम हुए मुश्ताक
धूप बेज़ार

सूर्य निस्तेज
सर्द सर्द हवाएं
आतंक राज

आएगी धूप
कबतक टिकेगा
यह कोहरा

कोई बताए
कैसे लाएं सम पे
सर्दी विषम

सर्द हवाएं
फिरें हैं इठलाती
सत्ता बेकाबू

सुर  न सधा
ठण्ड बजती रही
साज बेसुरा

सर्द हवाएं
आसमाँ लगा रोने
आंसू बहाए

सर्दी का रंग
हेमंत अवाक् खड़ा
फींका क्यों पड़ा

डालियाँ काँपीं
असहाय शजर
शीत लहर

धुंध को चीर
जो आर पार देखे
प्रकाश वीर

कोहरा ओढ़े
गले पड़ गई वो
शाल लपेटे

गंगा ने ओढ़ा
कोहरे का कवच
धार रक्षित

धुंध विचित्र
धुंधली कर गई
उजले चित्र

ठण्ड की मारी
धरती ने ओढ़ ली
कमली काली

समर संधि
सर्द,तो कभी गर्म
संक्रांति काल

देख सरदी
नई रजाई ओढ़
मिन्नी दुबकी

कोहरा ओढ़े
सर्दी में जनवरी
सांवरी भई

सरदी मुन्नी
सड़क पे निकली
कोहरा चुन्नी

शरद श्वेत
उरई के पात पे
बूँदें सफ़ेद

कोहरा ढंका
कभी तो बीतेगा ही
उदास दिन

चम्पई भोर
फुनगी पर काग
करता शोर

ओस से भीगा
शिशिर शरारती
भरे बाहों में

सूर्य निस्तेज
सर्द सर्द हवाएं
आतंक राज

आएगी धूप
कबतक टिकेगा
कोहरा रूप ?

सिकुड़ा पडा
मौसम मनहूस
धूप ले डूबा

सर्दी सताए
आसमां लगा रोने
पत्र गवाह

सर्दी न भाई
छिप गई ठण्ड में
बूढी रजाई

डालियाँ कांपी
असहाय शजर
शीत लहर

सर्दी का रंग
हेमंत खडा अवाक   (क हलंत)
फींका क्यों पडा

कैसा मज़ाक
शिशिर तो मुश्ताक
शीत गायब

मक्की के खेत
हरयाली मायावी
कोहरा ढंकी

ऋतु तो वही
मौसम की जुबान
नेता सी पल्टी

सर्द मौसम
ऋतु से छेड़छाड़
मिज़ाज गर्म

हवा बेकाबू
डगमग पतंग
पता न पंथ

शातिर जुबां
तेज़ कातिल हवा
रोके न रुके

है बड़ा दिन
धरती हो कुटुम्भ
बड़ा हो दिल

व्यतीत वर्ष
पुराना, स्वागत हो
नवल वर्ष

वर्ष पुराना
उसी की राख से
नया जनमा

नए वर्ष में
रचें कुछ मौलिक
बड़ा / सार्थक

सर्दी कम हो
तो खुलें हाथ पैर
कुछ काम हो

नया सोच हो
ढर्रा पुराना छूटे
नई दृष्टि हो

खेले सूरज
लुका-छिपी का खेल
असमंजस

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समाप्त