सितम्बर माह के श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु
१ ९ १६
नाचती गाती
झूमी वो मतवाली
गेहूँ की बाली
-प्रदीप कुमार दाश
पी रही रात
चन्दा सकोरे से
चांदनी जाम
-राजीव गोयल
२ ९ १६
छू नहीं सके
सफलता का कद
बौने इरादे
- अभिषेक जैन
दुर्लभ हुए
रुद्राक्ष व् मानव
एक मुंह के
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय
गस्से में पापा
आँचल में छुपाया
दादी अम्मा ने
विष्णु प्रिय पाठक
३ ९ १६
रिश्तों में पडी
जब जब दरार
उठी दीवार
-राजीव गोयल
मिट्टी के लोंधे
मूर्ति गढ़ता कहीं
एक कुम्हार
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय
रुक सी गई
यमुना देख ताज
गवाह चाँद
-कैलाश कल्ला
४ ९ १६
कन्धों पे हल
लिए बैल की डोर
खेत की ओर
-वी पी पाठक
खा कर खुश
पहन कर खुश
वाह कनक
(दो-सुखन)- आर के भारद्वाज
कहते रहे
कहाँ आ पाए आप
भेज दी यादें
-जितेन्द्र वर्मा
५ ९ १६
ज्ञान अंजन
आंजा गुरुवर ने
जागृत चक्षु
-महिमा वर्मा
भगाए दूर
अज्ञान का तमस
गुरु है सूर्य
-अभिषेक जैन
विघ्न हरता
है ज्ञानी सिद्धिदाता
तू एक दन्त
सुवना
६ ९ १६
गुम हो गई
फरेब के मेले में
होठों की हंसी
-अभिषेक जैन
अस्थिर मन
ठहरता कल में
कल है कहाँ ?
-जितेंद्र वर्मा
दीमकों ने
मेरी कताब पड़ी
मैं शब्द ढूँढूँ
-आर के भारद्वाज
बच्चों का घर
दीवारों पर उभरे
मासूम ख़्वाब
राजीव गोयल
७ ९ १६
परतें दर्द
रोज़ उतारता हूँ
जैसे केंचुली
-जितेंद्र वर्मा
८ ९ १६
बांधे वक्त ने
ग़मों के सांकल से
खुशी के पैर
अभिषेक जैन
उड़ ही गई
दादी साथ गौरैया
खटिया सूनी
- वी पी पाठक
10 ९ १६
झरे झरने
गाते वे झर झर
गिरि गौरव
प्रदीप कुमार दाश
आंधी में उड़े
बाग़ के सारे फल
माली के होश
आर के भारद्वाज
११ ९ १६
ओढ़ के धूप
देते छाया का साया
संत हैं पेड़
- आर के भारद्वाज
बिछाए भोर
रवि के स्वागत में
लाल गलीचा
राजीव गोयल
धरा ने धरा
मखमली रूप ये
हरा ही हरा
प्रियंका वाजपेयी
१२ ९ १६
सोने में जडी
ये गेहूँ की बालियाँ
खेतों में खडीं
-राजीव गोयल
13 9 16
पशु को मारा
पशुता को सहेज
कैसी ये ईद
-प्रियंका वाजपेयी
१४ ९ १६
विशाल हिन्दी
समाहित कर ली
कई भाषाएँ
-महिमा वर्मा
जड़ों से जुडी
गौरवशाली पथ
हिन्दी है शान
-महिमा वर्मा
हिन्द के वासी
हिन्दी में हस्ताक्षर
रास न आते !
-प्रदीप कुमार दाश
१५ ९ १६
झरते पत्ते
स्वागत कर चले
आगंतुक का
-प्रदीप कुमार दाश
तमाम रात
करते रहे पेड़
हवा से बात
-राजीव गोयल
१६ ९ १६
रहम करो
बरसाओ सरस
बूंदों के धारे
-प्रियंका वाजपेयी
१७ ९ १६
पैरों से नहीं
हिम्मत से इंसान
जीते पहाड़
-राजीव गोयल
ज़्यादा पीड़ा है
आज कार्य न होगा
कल होने दो
-(दो सुखन) आर के भारद्वाज
मावस रात
ओढ़ काली चादर
सो गया चाँद
-प्रदीप कुमार दाश
१८ ९ १६
वस्त्र, सुई से -
'ये कैसा चाव, तू दे
घाव ही घाव '
-आर के भारद्वाज
गंजे पहाड़
सह न सके ताप
टूटे बिखरे
राजीव गोयल
१९ ९ १६
खोल नभ में
बादलों की खिड़की
झांकता चाँद
राजिव गोयल (हाइगा)
कौन सुनाए
कहानी परियों की
नहीं है नानी
वी पी पटक
२० ९ १६
लड़कपन
उडी पतंग संग
दर्द की डोर
वी पी पाठक
नन्ही चिड़िया भूली वो चहकना
मन उदास
- प्र्दीप कुमार दाश
वर्षा की झड़ी
सजादे तारों पर
मोटी की लड़ी
-राजीव गोयल (हाइगा)
हवा गुज़री
बांसों के ह्रदय में
बजी बांसुरी
-राजीव गोयल
२१ ९ १९
अश्रु पर भी
बातों पर भी लगाते
पहरे लोग
प्रियंका वाजपेयी
वर्षा में नहा
सतरंगी चुनरी
पहने धूप
-राजीव गोयल
२२ ९ १६
सैर पे चली
गंध सेना लेकर
रात की रानी
-वी पी पाठक
२३ ९ १६
हवा ने छुआ
उदास खड़ा पानी
झूमने लगा
-राजीव गोयल
मेघ शावक
चढ़ हवा के काँधे
घूमे आकाश
राजीव गोयल
२४ ९ १६
तड़ तड़ाक
पड़े बूंदों की मार
छाता चीत्कारे
-वी पी पाठक
तरसी धरा
बादल घिरे रहे
बरसे नहीं
-जितेन्द्र वर्मा
२५ ९ १६
बुझता नहीं
चिराग से चिराग
जलता गया
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय
खेतों के पन्ने
किसान रचता है
जीवन छंद
-दिनेश चन्द्र पाण्डेय
गगन ओर
नीम तले झलुआ
देवे हिलोर
डा. रंजना वर्मा
लेकर चली
पनघट पे नारी
बातों का घडा
-अभिषेक जैन
२६ ९ १६
बहती नदी
समुन्दर से मिली
अस्तित्व खोया
-डा. रंजना वर्मा
हुक्के भी अब
तेरे मेरे हो गए
बदला गाँव
-राजीव गोयल
मेघों के पीछे
सुनहरी लकीर
आशा का दीया
-प्रियंका वाजपेयी
२७ ९ १६
मैदान खाली
मोबाइल ने छीनी
बच्चों की गेंद
-दिनेश केन्द्र पाण्डेय
जला पलाश
शाख शाख लटके
लाल अंगार
-राजीव गोयल
ताज महल
या, वक्त के गालों पे
लुढ़का आंसू
-प्रियंका वाजपेयी
खेतों में उगी
कंक्रीट की फसलें
बदला गाँव
-राजीव गोयल
बांटा न कर
कैंची सा बनकर
काटा न कर
-डा. रंजना वर्मा
२८ ९ १६
the entire temple
covered by the tree
waves of heat
-Tukaraam Khillare
सूनी डालियाँ
सूखे पत्ते झड़ते
निशि वासर
-डा. रंजना वर्मा
उगते रहे
नयन निलय में
स्वप्न अधूरे
-डा. रंजना वर्मा
जुगलबंदी
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पीपल पेड़
धागे से विश्वास के
लिपटा हुआ
-जितेन्द्र वर्मा
पीर मज़ार
बांधी धागे में पीर
हुआ निश्चिन्त
-राजीव गोयल
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आंसू की बूंद
समेटे बड़ी व्यथा
आँख न मूंद
-मुकेश शर्मा
२९ ९ १६
यशोदा घर
उठ रही सोहर
जनमा लाल
-डा. रंजना वर्मा
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जुगल बंदी
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मेरे अंगना
खेलते-खाते आता
भोर का तारा
-वी पी पाठक
जागी सुबह
देख भोर का तारा
सो गई रात
- राजीव गोयल
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शिखर पर
चढ़ के मंहगाई
सहम गई
-वी पी पाठक
चढ़ शिखर
करा मंहगाई ने
इंसा को बौना
-राजीव गोयल
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पूछें पलाश
इतना प्रदूषण ?
गुस्से से लाल
-मुकेश शर्मा
लिए सर पे
अंगारे लाल लाल
खिला पलाश
रालीव गोयल
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३० ९ १६
चाल न चल
ज़िंदगी ताश नहीं
प्रीति का खेल
-आर के भारद्वाज
शान्ति है आज
सजावट भी न की
लड़ी नहीं थी
-आर के भारद्वाज (दो सुखन)
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समाप्त