शनिवार, 30 अप्रैल 2016

(4) अप्रैल माह के हाइकु

हँसा के हँस
मूर्ख बन के रह
मज़े में बस
       -राजीव निगम राज
पत्थर दिल
संकीर्ण हुई सोच
बढ़ा विज्ञान
        -कैलाश कल्ला
जल में ज़िंदा
बाहर मरे  मीन
पर्दानशीन
       -आरके भारद्वाज

२.४.१६
चढ़ न सका
सफलता की सीढी
लंगडा धैर्य
    -अभिषेक जैन
मापें सुकून
बीते द्वंद्व  से नहीं
मन तृप्ति से
       -प्रियंका वाजपेयी
पारदर्शी हों
शीशे सा साफ़ दिखें
कहे आईना
       -आर के भारद्वाज
बोलता फूल
प्रभु मैं हूँ आपकी
चरण-धूल
        आर के भारद्वाज

३.४.१६

गिरी बरखा
बजा जलतरंग
मेरे आँगन
       -राजीव गोयल
बुने जो गीत
दर्द की सलाई से
गाता ही रहा
       -जितेन्द्र वर्मा
जीवन यात्रा
थक कर मनुज
सोए कब्र में
       -अमन चाँदपुरी

४.४.१६
आँखों में तेरे
लुका छिपी खेलती
मानस मीणा
        -प्रियंका वाजपेयी
खो गई आत्मा
रह गया शरीर
बिके बाज़ार
      -जितेन्द्र वर्मा
खींची दीवारें
बंटता गया घर
बची दीवारें
     -कैलाश कल्ला
गंगाजल सी
बेटी मोक्ष-दायिनी
शक्ति स्वरूपा
       -प्रीति दक्ष
काली रात है
सूरज सो गया है
चाँद डटा है
      -अमन चांदपुरी

५.४.१६
पूनो का चाँद
उतरती नभ से
चांदनी रात
       -राजीव गोयल
दर्द है बना
मलहम दर्द का
दर्द है दवा
      -जितेन्द्र वर्मा

६.४.१६
दिया तो जला
अन्धकार न मिटा
मन था बुझा
        -प्रियंका वाजपेयी
हरा न पाईं
सांसारिक इच्छाएं
सन्यासी मन
       -राजीव गोयल
देह का अंत
ख़त्म हुए अध्याय
पुस्तक बंद
       -अभिषेक जैन
फटी बिवाई
लगाओ वर्षा लेप
धरा के पैर
       -राजीव गोयल

७.४.१६
जी ले ज़िंदगी
नहीं मिले दोबारा
खुशी ज़िंदगी
        -जितेन्द्र वर्मा
पलटा नहीं
पुकारती रही माँ
कैसा चिराग ?
       -प्रियंका वाजपेयी
चाँद कलश
छलकती चांदनी
नहाती रात
      -राजीव गोयल
पूनों को देख
लहरों में खो गया
प्रेमी समुद्र
      -कैलाश कल्ला

८.४.१६
भुगते सज़ा
दूसरों के पापों की
मासूम धरा
      -राजीव गोयल

९.४.१६
दिखती साफ़
बुज़ुर्ग चेहरों पे
वक्त की छाप
        (हाइगा)-राजीव गोयल
कई नाटक
एक साथ देखिए
मंच ज़िंदगी
       -जितेन्द्र वर्मा
लू के हंटर
रवि ने बरसाए
तड़पी धरा
       -राजीव गोयल
नयनों में आस
अन्तरंग में पीर
बूढा शरीर
         -अभिषेक जैन
जाल में फंस
लूटा छटपटाए
जिना कब्ज़े स्त्री
          -विभा श्रीवास्तव
स्याही के संग
भीग गए मधुर
प्रेम के रंग
         -डा, अम्बुजा मलखेडकर

१०.४.१६
छोड़ घोंसला
किधर गया पंछी
पूंछती पत्ती
       -राजीव गोयल
in the name of God
roaming godman
delivering sermons of lust
        -Jitendra Varma

11.4.16
क्यों न पाया
सब पा के सुकून
कुछ तो खोया
        -प्रियंका वाजपेयी
काम गलत
पत्र नहीं पहुंचा
पता नहीं था
        --
मन दुखी है
साईकिल न चली
चैन नहीं है
       -दो-सुखन
       -आर के भारद्वाज

१२'४.१६
कटते पेड़
बनी बहुमंजिले
पंछी बेघर
      कैलाश कल्ला
काटता हूँ मैं
हाइकु की फसल
उगा के शब्द
       -राजीव गोयल

१३.४.१६
उच्च संस्कार
किसने पाया आज
जो हो उद्धार
     -अम्बुजा 'सुवना''
भीषण गर्मी
पेड़ सहते रहे
देने को छाँव  
       -जितेंद्र वर्मा
भोर होते ही
हथगोला उठाए
सूर्य घूमता
      -आर के भारद्वाज
पानी न खिंचा
पतंग भी न उडी
डोर नहीं थी
        (दो सुखन) आरके भारद्वाज
सूर्य शीश पे
छाया भी मांगे छाया
उफ़ ये घाम !
      -प्रियंका वाजपेयी
लिखे सूरज
किरण कलम से
भोर के गान
      -राजीव गोयल

१४.४.२०१६
टंगे ज्यूं तारे
महमहाता बेला
गुंथे त्यूं वेणी
      -विभा श्रीवास्तव
निर्जन वन
भटकते जुगुनू
शापित यक्ष
       -प्रीति दक्ष

१५ ४. १६
बना है वृक्ष
छाँव की धर्मशाला
रुका पथिक
     -अभिषेक जैन `````````````
झील दिखाए
चमकते चाँद  को
पानी हिलाए
      -राजीव निगम 'राज़'
स्मार्ट शहर
बहु स्मार्ट  मकान
घर हैं कहाँ ?
      -जितेन्द्र वर्मा

१६.४.१६
बुनता रहा
साँसों का ताना बाना
झीना अस्तित्व
        -प्रियंका वाजपेयी
इंसा डंसता
इकदूजे को अब
सांप हंसता
         -राजीव निगम 'राज़'
रो भी न सका
देख पंछी का दर्द
ये सूखा नल
      (हाईका) -राजीव गोयल
स्वयं ही प्यासा
तुम्हें कैसे पिलाऊँ
मैं घनरस
       -डा. अम्बुजा  'सुवना'
चुल्बुलों को
बैठाकर पढ़ाती
हमारी शिक्षा
      -पीयूषा

१७.४.१६
सरसों फूली
नशे में धुत झूली
पेर दी गई
       -आर के भारद्वाज
सोना न चाहूँ
सब कुछ ले लो
बस सोने दो
      कैलाश कल्ला
प्यासा बहुत
तालों कुओं का जल
पी गया सूर्य
       -संतोष कुमार सिंह
काम मशीनी
क्यों करता आदमी
होता बेमानी
        -पीयूषा
भीतर आओ
अलख जगाकर
झांको खुद में
       -प्रियंका वाजपेयी

 १८.४.१६
आया चुगने
सूरज राजहंस
ओस के मोती
        -राजीव गोयल
फर्श पे लेटे
वे सुन रहे गीता
गौ-धूली वेला
      -कैलाश कल्ला
चिड़िया प्यासी
मुंडेर पर जल
मांगे तुमसे
      (हाइगा)-प्रीति दक्ष
बिना तपे ही
बारिश व् बहारें
मिलती नहीं
       -पीयूषा

१९.४.१६
दर्द का दर्द
जब देखा न गया
लगाया गले
     -राजीव गोयल
पिघल जाती
समय की धूप से
दुखों की बर्फ
      -संतोष कुमार सिंह
तपे  धूप में
यह दरख्त घने
छातों से तने
       -राजीव गोयल
अलगाव से
बदरंग जीवन
तुम अंजान
      -अम्बूजा "सुवना"
त्रास मिटाए
रेत से स्व झुलसे
मीठा लालमी
       -विभा श्रीवास्तव
समुद्र तपे
बरसात के लिए
आंसू टपकें
       -पीयूषा

२०.४.१६
ढूँढ़ते ठाँव
झुरमुटी डगर
छिलते पाँव
    -विभा श्रीवास्तव
धूप में तेज़ी
पेड़ पसारे हाथ
करने छाँव
      -कैलाश कल्ला
बुद्ध शरण
समंदर सुख का
प्रश्न त्याग का
      -तुकाराम खिल्लारे
कंक्रीट वन
बिजली के तार ही
पंछी के घर
      -राजीव गोयल (हाइगा)
listen carefully
your soul whispers
body doesn't
       -jitendra varma

२१.४ १६
मन अंगना
वक्त की खूँटी पर
टंगी हैं यादें
      -राजीव गोयल
स्वार्थ रचित
हर दृष्टि बाधित
सृष्टि कुंठित
       -राजीव "राज़"
कोने में बस्ता
खिलौने आसपास
ग्रीष्मावकाश
      -अभिषेक जैन

२२. ४. १६
हे बलशाली
कमज़ोर को देना
तुम पौरुष
      -अम्बूजा
कूदी लहर
गिरी मुंह के बल
मिला न चाँद
       -राजीव गोयल

२३.४.१६
सड़कें चौड़ी
दिल हुए तंग
ईश्वर दंग
     -संतोष कुमार सिंह
कोई तो रोता
मेरी बर्बादी पर
मेरा होकर
      -राजीव निगम 'राज'
बाजे पायल
रोता हुआ नैपत्थ्य
हाय ज़िंदगी
      -जितेन्द्र वर्मा
माँल में जूते
सड़क पर किताबें
संस्कृति बिकी
      - आर के भारद्वाज
हाँक ले गया
पवन चरवाह
मेघ रेवड़
      -राजीव गोयल
मिट्टी जमाने
नेता पानी छिड़के
जन तो प्यासा
      कैलाश कल्ला

२४.४.१६
भू पे दरारें
पके चूहे की गंध
फिजा में फैली
   
भू पे दरारें
बिवाई सहलाते
स्व हाथ काँपे

भू पे दरारें
बयाँ न कर पाऊँ
तन तपन
      -विभा श्रीवास्तव

पढो किताब
मर रहे हैं शब्द
लेने दो सांस
      - राजीव गोयल
कई सवाल
उत्तर बस  एक
मानव धर्म
     -जितेन्द्र वर्मा

२५. ४. १६
कभी सुनिए
झकझोरे अंत: को
मौन की गूँज
     -प्रियंका वाजपेयी
धार्मिक स्थल
या पिकनिक स्पाट
भेद मुश्किल
      कैलाश  कल्ला
माँ आँखें लाल
स्नेही कान पकडे
धमाल लाल
       -विभा श्रीवास्तव
अजन्मे भ्रूण
सूखे ने मार दिए
धरा गर्भ में
      -राजीव गोयल

२६.४.१६
रहे हैं झेल
सश्रम कारावास
खेतों में बैल
       -अभिषेक जैन
शादी अधूरी
भोज भी अधूरा ही
भात नहीं था
     -आर की भारद्वाज (दो सुखन)
मृत्यु के बाद
साया, न रहे पास
बहा दे राख
      कैलाश कल्ला

२७.४.१६
तुलसी पौधा
कद-काठी में छोटा
ऊंचा ओहदा
      -अभिषेक जैन
हुई बावरी
सागर की बाहों में
सिमटी गंगा
       -प्रीती दक्ष
दूजी दुनिया
अनजाना पथ है
धुंध के पार
       -प्रियंका वाजपेयी

२८.४.१६
नहीं हो सके
बिना मनुष्य देह
देव भी मुक्त
       -प्रियंका वाजपेयी
प्रभात वेला
सूरज चरवाहा
काम पे चला
       -हाइगा, राजीव गोयल
गो-धूलि  काल
साया से बौना  इंसा
वक्त की बात
       -कैलाश कल्ला

२९.४.१६
तपता सूर्य
सोखता पृथ्वी जल
मनु विकल
      -राजीव निगम 'राज़'
बिछड़ गया
कोई बहुत ख़ास
मन उदास
       -अमन चाँदपुरी
चूनर ओढ़े
दुल्हन का चेहरा
साए में धूप
      -अमन चाँदपुरी
शब्द अर्पण
मन हुआ दर्पण
नया सृजन
       -अमन चांदपुरी
जीने की आस
जबतक है श्वास
मिटे न प्यास
        -कैलाश कल्ला

३०.४.१६
कहीं दूर से
आती है आहट
उम्मीद लिए
      -प्रियंका वाजपेयी
उठा के लाई
ढेर सारे विवाद
खर्चीली जुबां
      -अभिषेक जैन

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